कैसे रुकेगी 'अन्न-जल' की बर्वादी

पिछले दिनों वेबसाइट कंपनियों के एक कार्यक्रम में दिल्ली के हयात रिजेंसी में जाना हुआ तो सुबह 10 बजे के आस पास, कार्यक्रम से पहले वहां 'स्नैक्स' चल रहे थे. सभी लोग तो नहीं, लेकिन कई लोग अपनी प्लेटों में स्नैक्स के टुकड़ों को नुक्सान करते जा रहे थे, जिसे देखकर थोड़ी पीड़ा जरूर हुई, किन्तु यह पीड़ा तब और बढ़ गयी जब टेबलों पर सजी हुई पानी की बोतलों को खोलकर पूरा इस्तेमाल करने से पहले ही उसे ठिकाने लगा दिया जा रहा था. ऐसे में एक आंकड़े के परिणामों को यहाँ रखना लाजमी हो जाता है, जिसके अनुसार दुनिया भर में जितना भोजन बनता है, उसका एक तिहाई, यानि 1 अरब 30 करोड़ टन भोजन बर्बाद चला जाता है. ऐसी ही एक अन्य रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि 'बढ़ती सम्पन्नता के साथ खाने के प्रति लोग और भी असंवेदनशील होते जा रहे हैं'. जाहिर है, पानी और भोजन मनुष्य की दो मूलभूत जरूरतों में शामिल है और अगर इसके प्रति कोई व्यक्ति संवेदनशील नहीं है तो फिर विवश होकर उसकी लापरवाही पर ध्यान जाता ही है. विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में प्रतिदिन 20 हज़ार बच्चे भूखे रहने को विवश हैं, जबकि हकीकत में यह संख्या कहीं ज्यादा है. अगर यही आंकड़ा भारत के सन्दर्भ में देखें तो विश्व भूख सूचकांक में हमारा स्थान 67वां है और यह बेहद शर्मनाक बात है कि भारत में हर चौथा व्यक्ति भूख से सोने को मजबूर है. जाहिर है, आंकड़ों को देखने पर कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं, किन्तु हम हैं कि अपनी लापरवाही छोड़ने को तैयार नहीं होते!

इसी क्रम में, जब कभी हम अपने दोस्तों को खाने पर बुलाते हैं या घर में कोई पार्टी रखते हैं तो, मेहमानों के लिए ढेर सारे व्यंजन बनाते हैं. लेकिन कई बार हमें इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि कितने लोग आएंगे और कितने लोगों के लिए कितना खाना बनना है और इसकी वजह से बहुत सारा खाना बच जाता है जिसे स्टोर करना संभव नहीं होता है और अंततः सारा खाना कूड़े में जाता है. क्या वाकई थोड़ी सावधानी और प्लानिंग के साथ चलकर हम इन नुकसानों से बच नहीं सकते है? इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 23 करोड़ दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के चलते खराब हो जाती हैं. जाहिर है ऐसे आंकड़े कई बार हमें क्रोध से भर देते हैं, किन्तु सबसे बड़ा सवाल यही है कि व्यक्तिगत स्तर पर हम 'अन्न की बर्बादी' को किस प्रकार न्यून कर सकते हैं? हमारे देश में अन्न को देवता माना जाता है और उसकी पूजा होती है, इसलिए खाने को बर्बाद करना एक तरह से पाप माना गया है. ये कोई एक दिन या एक घर की ही बात नहीं है, बल्कि धीरे- धीरे ये बुरी आदत लोगों के जीवन का हिस्सा सी बन गयी है. संपन्न वर्ग तो खाने को बर्बाद करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है, जबकि देश में एक ओर भूख से जनता बेहाल भी है. चूंकि भारत एक ऐसा देश है जहाँ उत्सव, त्यौहार, शादी- ब्याह लगातार चलते ही रहते हैं और इन अवसरों पर भारी भीड़ भी इकठ्ठा होती है, तो जाहिर सी बात है इन भीड़ के द्वारा खाना भी उतना ही बर्बाद किया जाता है. एक सर्वे के अनुसार अकेले बेंगलुरु में एक साल में  होने वाली शादियों में 943 टन पका हुआ खाना बर्बाद कर दिया जाता है. बताते चलें कि इस खाने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों को एक समय का सामान्य भारतीय खाना खिलाया जा सकता है.

यह केवल एक शहर का आंकड़ा है, जबकि हमारे देश में 29 राज्य हैं. जाहिर है शादियां और फंक्शन्स तो हर राज्य के हर शहर में होती हैं और अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल होने वाले अन्न की बर्बादी की असल मात्रा क्या होती होगी! ये तो हो गया भीड़ भरे माहौल का हिसाब, जबकि रोजमर्रा की बर्बादी भी कुछ कम नहीं है. जैसे ऑफिस के कैंटीन, स्कूल के लंचबॉक्स, हर घर के किचन में बचने वाला खाना! इसका तो कोई हिसाब ही नहीं है. भारत जैसे देश में जहां लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है ऐसे देश में हम अगर इस तरह बेतहाशा खाने को बर्बाद कर रहे हैं तो फिर हमें सभ्य नागरिक कहलाने का क्या हक़ है? क्या हमें एक बार इस बात का विचार नहीं करना चाहिए कि लाखों भूखे लोगों को बमुश्किल एक वक़्त की रोटी नसीब होती है या नहीं? खाने को लेकर चाहत बढ़ती जाना और उस चाहत का बेलगाम हो जाना एक तरह की बीमारी है, लेकिन वक़्त रहते इसे नियंत्रित करना एक चुनौती है. कई लोगों का मन खाने के विभिन्न व्यंजनों की ओर भागता है, जबकि उनके पेट की अपनी एक सीमा है. जब कभी हम भाई अधिक खाने की ज़िद्द से अपनी थाली भरते थे तो मुझे याद है कि पिताजी टोकते हुए कहते थे कि 'शरीर अपनी आवश्यकतानुसार ही खुराक लेगा, जबकि ज्यादा मात्रा में खाना भी एक तरह का खाने का नुकसान करना है।

आज बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का खाद्य प्रोद्योगिकी संस्थान इतना अच्छा काम कर रहा है की किसी गरीब बच्चे का पेट भरने में सहायता का यह कदम आज उठा है। और आगे भी यह जारी रहे तो मुझे उम्मीद है की हम आज को तो नहीं पर समय के साथ चल रहे इस खाने की बर्बादी को तथा भूखे गरीब बच्चो के भूखेपन को जरूर दूर कर पाएंगे।

धन्यवाद

Manish(B.Sc. 3rd Year)